सिंदबाद , मैजिकल लाइफ
सिंदबाद ने बहुत ही सोच समझ कर उस शहर को छोड़कर दूसरे शहर में कारोबार करने के लिए जाने का मन बना लिया था। सिंदबाद ने बाहर के मुल्कों में जाकर कारोबार कर अपनी खोई मिल्कियत वापस पाने की कोशिशें करना चाहता था। सिंदबाद ने पता किया कुछ सौदागर बाहर के मुल्कों में अपने कारोबार के लिए जाते थे। उस काम के लिए रकम की जरूरत थी और वह रकम सिंदबाद के पास नहीं थी। उसके पास अब सिर्फ उनकी पुश्तैनी कोठी ही थी जिसे या तो सिंदबाद बेच सकता था या फिर कहीं गिरवी रख सकता था। सिंदबाद ने अपने एक जानकार कारोबारी के पास अपनी हवेली को बेचा था.. ताकि उससे कारोबार करने के लिए एक रकम मिल जाए। वह बूढ़ा जानकार कारोबारी उसके अब्बा हुजूर का बचपन का दोस्त था। इसीलिए उस हवेली की काफी अच्छी कीमत सिंदबाद को दी थी.. और उसे वादा भी किया था कि वह हवेली किसी भी कीमत पर सिंदबाद की ही रहेगी। सिंदबाद जब चाहे रकम देकर हवेली वापस ले सकता था। अब सिंदबाद के पास कारोबार के लिए माकूल रकम भी मिल गई थी। अब बस किसी कारोबारी से बात करके जाने का इंतजाम करना था। कई लोगों से बात करने के बाद यह नतीजा निकला कि किसी दूसरे देश में जाकर कारोबार करने पर ही उसे जल्द से जल्द अपना सब कुछ वापस पाने के लिए माकूल रकम इकट्ठा कर पाएगा। ऐसा सोच कर सिंदबाद ने बहुत से लोगों से बातचीत कर पता लगाया। तब उसे उसके एक दोस्त ने दरियाई कारोबारी हुसैन और निजाम के बारे में जानकारियां दी। उसे पता चला की हुसैन और निजाम उसी के शहर के दो बहुत बड़े कारोबारी थे। वह दूसरे मुल्कों में जाकर सामान बेचते थे और वहां से बहुत सी रकम हीरे जवाहरात कमा कर लाते थे। वो बहुत ही ज्यादा बड़े कारोबारी थे तो बिना किसी जान पहचान के उनसे मिलना मुश्किल था और वो लोग भी अनजानो से नहीं मिलते थे। इसलिए सिंदबाद ने बहुत ही ज्यादा लोगों से बातचीत की और अपने जानकारों से इल्तजा की कि वह लोग निजाम और हुसैन से उसकी बात करवा दें। उसके एक दोस्त अनवर को सिंदबाद पर थोड़ा रहम आया और उसने अगले दिन सिंदबाद को हुसैन के घर के बाहर मिलने के लिए कहा। दूसरे दिन अलसुबह ही दोनों लोग हुसैन के घर के बाहर थे। हुसैन का घर बहुत ही बड़ा और आलीशान था। उस वक्त के सबसे अमीर लोगों में उसकी गिनती थी। इसीलिए उसका घर भी उसके उसी रुतबे के हिसाब से काफी बड़ा और आलीशान था। सिंदबाद को थोड़ी झिझक हो रही थी। उसे लगा की शायद हुसैन को उसका आना अच्छा ना लगे पर उसके उलट ही हुआ। जैसे ही उन्होंने अपने आने की खबर अंदर भिजवाई। तो एक खूबसूरत तकरीबन 30 साल का आदमी बाहर आया। उसके चेहरे से नूर टपक रहा था, रेशम के खूबसूरत कपड़े पहने हुए थे और सिर पर लाल पगड़ी पहनी थी। बाहर आने पर उनके बीच दुआ सलाम हुई। हुसैन ने बहुत ही इज्जत के साथ उन्हें अपने दीवान खाने में बिठाया और बहुत से शरबत और खजूर खाने के लिए दिए। बहुत ही ज्यादा इज्जत के साथ बात की। हुसैन ने कहा, "भाई.. क्या तुम ही वह आदमी हो..!! जिसके बारे में अनवर ने मुझसे बात की थी?? क्या तुम ही बाहर के मुल्कों में कारोबार करने के लिए जाना चाहते हो?" सिंदबाद बहुत ही ज्यादा शर्मिंदा महसूस कर रहा था। उसने भी झिझकते हुए अपनी पूरी दास्तान उसे सुनाई। और कहा, "जी भाईजान..!! मैं कारोबार के लिए जाना चाहता हूं। मैंने अपनी बेवकूफियों और नादानियों की वजह से अपने अब्बू और अपने पुरखों की दौलत गंवा दी। इसलिए मैं बहुत ही ज्यादा शर्मिंदा हूं। पर अब मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो गया है.. इसलिए मैं जो कुछ भी गवाया है उसे फिर से कमाना चाहता हूं। उसके लिए कारोबार करने से अच्छा कोई रास्ता नहीं है। क्या आप इसमें राह दिखा सकते हैं.. और मेरी मदद कर सकते हैं??" सारी बात सुनकर हुसैन ने उसे दिलासा देते हुए कहा, "कोई बात नहीं.. तुम्हारी उम्र में ऐसी बातें हो जाती हैं.. पर खुदा का शुक्र है कि तुम्हें सही वक्त पर अक्ल आ गई। जिससे तुमने जो कुछ भी खोया है.. अभी तुम्हारे पास वक्त है वापस कमाने का। हमारा बेड़ा जल्दी ही कारोबार के लिए निकलने वाला है। तो तुम हमारे इस शहर की जो भी मशहूर चीजें हैं.. वह खरीद लो। हम तुम्हें हमारे साथ कारोबार के लिए ले चलेंगे। बाकी सब कुछ अल्लाह के ऊपर है। अल्लाह ने चाहा तो सब कुछ तुम्हें जल्दी ही वापस मिल जाएगा।" सिंदबाद ने उसकी बात सुनी तब बहुत ही ज्यादा खुश हो गया। उसने बहुत ही ज्यादा शुक्रगुजार होकर.. हुसैन का बार बार शुक्रिया अदा किया और वहां से वापस जाने के लिए चल दिया। सिंदबाद ने वहां की मशहूर बहुत सी चीजें इत्र, जवाहरात, और भी कई खास और आम चीज़े खरीदी और उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गया। उस बेड़े के ही एक और सौदागर निजाम से भी बात कर ली.. ताकि उसे बाद में किसी भी तरह का सौदा करने में दिक्कत ना आए। निजाम ने बताया कि वह जहाज उसके एक दोस्त सौदागर का था। जो लोगों को कारोबार के लिए परदेस जाने के लिए लेकर जाता था। इस काम का उन से किराया वसूल करता था। यह भी उसका एक कारोबार था। सिंदबाद ने उस सौदागर से मिलने का सोचा और उसे घर मिलने पहुंच गया। उसका घर बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था.. पर बहुत ही ज्यादा आलीशान था। आस-पास बहुत तरह के पेड़ पौधे और फलों वाले दरख्त लगे हुए थे। सौदागर को बागवानी का बहुत ही ज्यादा शौक था और उसके घर के आसपास के दरख्तों को देखकर यह एहसास होता था कि उसे बागवानी की भी काफी अच्छी समझ थी। सिंदबाद ने उस सौदागर के घर के बाहर जाकर उसके एक हाकिम को अपने आने की वजह बताइ। नौकर ने अन्दर जाकर उसे सिंदबाद की आमद की खबर दी और बाहर आकर सिंदबाद को थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहा। जल्दी ही एक बुड्ढा सा आदमी सिंदबाद की तरफ आता दिखाई दिया। आने वाला आदमी काफी उम्र दराज दिखाई दे रहा था। उसकी उम्र लगभग तकरीबन 55-60 साल के आसपास होगी। चेहरे से ही वो काफी रसूखदार दिखाई दे रहा था। उसका दबदबा भी साथ ही दिख रहा था। सिंदबाद ने आगे बढ़ कर उसे सलाम किया और अपने आने का मकसद उसे बताया। दोनों ने मिलकर किराया और बाकी बातें तय कर ली। उस उम्र दराज सौदागर ने सिंदबाद को बताया कि वो लोग कल किसी भी हाल में निकलने वाले थे। सिंदबाद ने घर आकर अपने सफर पर निकलने की तैयारियां करना शुरू कर दिया। उसने सफर पर जाने के लिए जो रकम चाहिए थी.. उसके लिए अपना पुश्तैनी मकान गिरवी रखा था। वह भी अपने दिल पर पत्थर रखकर।
Anjali korde
10-Aug-2023 11:09 AM
Nice
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RISHITA
06-Aug-2023 09:57 AM
Very nice
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Babita patel
04-Aug-2023 05:56 PM
Nice
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